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 छत्तीसगढ़ से अयोध्या भेजे जाएंगे एक लाख दीये: गौसेवा की अनूठी पहल

छत्तीसगढ़ से अयोध्या भेजे जाएंगे एक लाख दीये: गौसेवा की अनूठी पहल

दुर्ग: छत्तीसगढ़ में दुर्ग नगर निगम द्वारा संचालित राधे कृष्ण गौधाम एक अनूठा आत्मनिर्भर गौधाम है, जो गायों की सेवा और उनसे उत्पाद बनाने के लिए प्रसिद्ध है। इस गौधाम में गाय के गोबर और गौमूत्र का उपयोग कर विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनाए जा रहे हैं। विशेषकर, इस बार यहां से गाय के गोबर से दीये और मूर्तियां तैयार की जा रही हैं। दिवाली के अवसर पर यह पहल न केवल स्थानीय समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह गौसेवा का भी प्रतीक है। राधे कृष्ण गौधाम का महत्व राधे कृष्ण गौधाम छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में स्थित है और यह गौसेवा का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है। इस गौधाम में 500 संरक्षित गायें हैं, जिनसे प्रतिदिन गोबर एकत्रित किया जाता है। गायत्री, जो इस गौशाला की संचालिका हैं, ने बताया कि यहां से बनाए जा रहे दीयों और मूर्तियों की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इस साल दिवाली के लिए विशेष रूप से गणेश और लक्ष्मी जी की मूर्तियां तैयार की जा रही हैं। दीयों का उत्पादन और वितरण गौधाम से पांच लाख दीयों का ऑर्डर प्राप्त हुआ है, जिसमें से एक लाख दीये अयोध्या भेजे जाएंगे। बाकी दीये दुर्ग, भिलाई, राजनांदगांव, मध्य प्रदेश, राजस्थान और विदेशों में भी भेजे जाएंगे। इस कार्य में कल्याणम महिला स्व सहायता समूह की महिलाएं सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं। यह समूह प्रतिदिन 1000 से अधिक गोबर के दीये बना रहा है। गोबर से उत्पाद बनाने की प्रक्रिया गायत्री ने बताया कि दीये और मूर्तियों को बनाने के लिए गाय के गोबर में चूना पाउडर, मुल्तानी मिट्टी और गोमूत्र मिलाया जाता है। इस प्रक्रिया से न केवल उत्पाद तैयार होते हैं, बल्कि यह पर्यावरण के अनुकूल भी है। गोबर से बने ये दीये और उत्पाद शुद्धता की गारंटी प्रदान करते हैं, जिससे उपभोक्ताओं में विश्वास बढ़ता है। गौसेवक देवाशीष घोष की अपील गौसेवक देवाशीष घोष ने कहा कि वर्ष 2020 से इस गौधाम में गोबर से बने उत्पादों का उत्पादन शुरू हुआ। हालांकि, पिछले एक साल में गोबर से बने दीयों और अन्य उत्पादों की मांग में कमी आई है। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे अपने घरों में गाय के उत्पादों का उपयोग करें। "अगर आप गाय को माता मानते हैं, तो अपने घरों में गोबर के दीयों का उपयोग करें। यह न केवल गौसेवा है, बल्कि आपके लिए शुद्धता का भी प्रतीक है," उन्होंने कहा। आर्थिक लाभ और आत्मनिर्भरता गौधाम में दीये और मूर्तियां बनाने से महिलाओं को आर्थिक लाभ भी हो रहा है। स्वयं सहायता समूह की सदस्य रानी यादव ने कहा कि इस कार्य से उन्हें आय का स्रोत मिला है। इससे न केवल उनका आत्मसम्मान बढ़ा है, बल्कि वे अपने परिवार का भरण-पोषण भी कर पा रही हैं। इस प्रकार की पहल से गांव में महिलाओं को सशक्त बनाने का कार्य हो रहा है। पर्यावरणीय लाभ गाय के गोबर से बने उत्पादों का उपयोग पर्यावरण के लिए भी लाभदायक है। गोबर जैविक और पुनर्नवीनीकरण योग्य है, जो मिट्टी की गुणवत्ता को भी बढ़ाता है। इसके उपयोग से रासायनिक उत्पादों की आवश्यकता कम होती है, जिससे प्रदूषण में भी कमी आती है। यह पहल न केवल गायों की सुरक्षा को बढ़ावा देती है, बल्कि पर्यावरण की रक्षा में भी सहायक है। सामुदायिक सहभागिता गौधाम की यह पहल सामुदायिक सहभागिता का भी एक उदाहरण है। स्थानीय लोग, विशेषकर महिलाएं, इस कार्य में सक्रिय भाग ले रही हैं। उनके प्रयासों से ना केवल आर्थिक स्वतंत्रता मिल रही है, बल्कि समाज में एकजुटता भी बढ़ रही है। यह स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत कर रहा है, जिससे गांव में विकास हो रहा है। गौधाम के संचालकों का लक्ष्य है कि वे आने वाले समय में और अधिक उत्पादों का उत्पादन करें और स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाएं। उनके प्रयास हैं कि वे गाय के उत्पादों की मांग को फिर से बढ़ाएं और लोगों को इसके लाभ के प्रति जागरूक करें। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में राधे कृष्ण गौधाम की यह पहल न केवल गौसेवा का प्रतीक है, बल्कि यह आत्मनिर्भरता और आर्थिक सशक्तीकरण का भी उदाहरण है। दीयों का उत्पादन और उनका अयोध्या भेजना इस बात का प्रमाण है कि अगर समाज मिलकर काम करे, तो कैसे हम पर्यावरण की रक्षा करते हुए आर्थिक लाभ भी कमा सकते हैं। यह पहल निश्चित रूप से दीयों की रोशनी के साथ-साथ समाज में एक नई ऊर्जा और आशा का संचार करेगी। आइए, हम सभी इस दिवाली गाय के गोबर से बने दीयों का उपयोग करें और गौसेवा के इस महत्वपूर्ण कार्य में योगदान दें। इससे न केवल हमारे घरों में प्रकाश फैलेगा, बल्कि हम सभी मिलकर एक उज्जवल और सशक्त समाज की दिशा में कदम बढ़ा सकेंगे।

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